जनकपुर मे पंडित जगहक निर्धारण केलथि, नरेश सीतामढ़ी एलाह। सीतामढी क पुनौरा मे जखने हल खेत मे जोतल गेल धरती मे गड़ल एकटा घड़ा निकलल। ओहि मे स लक्ष्मी अवतरीत भेलीह। जखने जनक हुनका गोद लेलथि, झमाझम बरखा शुरू भ गेल। जगत जननी कए बचेबा लेल जनक एक मड़ई (झोपड़ी) मे चल गेलाह। संगहि हल स बनल कियारी अर्थात सीता मे भेटल जगत जननी क नाम सीता राखल गेल। जे बाद मे वैदेही, जानकी आ मैथिली नाम स सेहो विख्यात भेलीह। ओ मड़ई एखनो सीतामड़ई क नाम स अवस्थित अछि। कहल जाइत अछि जे सीतामड़ई कालान्तर मे अपभ्रंश भ सीतामढ़ी भ गेल।
मिथिला मे सीताक जयंती उत्साह स नहि मनाउल जाइत अछि। ओना एहि दिन धार्मिक अनुष्ठान होइत आयल अछि।
मिथिलाक राजा सीरध्वज क बाद मिथिलाक जनक भेलाह औदास। ओ जानकी नवमी दिन कोनो क्षत्रिय आ ब्राह्मïण कए खेत मे हल चलेबा पर प्रतिबंध लगा देलथि। ओहि दिन स आंगन मे हलक पूजा होइत अछि संगहि कामना होइत अछि जे ककरो घर मे सीता सन कपार ल बेटी नहि जन्म लिए। मिथिला मे आइ सेहो सुहाग लेल गौरीक पूजा कैल जाइत अछि, जखन कि सीताक पूजा लक्ष्मीक मंत्र स होइत अछि। अर्थात मिथिला मे सीताक पूजा नहि होइत अछि।
आइ धरि अवधक परंपरा कए प्रचारित करबा मे लोक लागल रहल आ मिथिलाक परंपरा उपेक्षित रहल। जाहि स परंपरा खत्म भ रहल अछि। सीताक कारण अवध मे पुतहु कए लक्ष्मी कहल जाइत अछि, जखन कि मिथिला मे बेटी कए इ उपाधि अछि।
अपन बहिन उर्मिला क कष्ट देखि राजा औदास इ परंपरा चला देने रहथि जे एक घर मे तीन बहिनक विवाह नहि हुए। सीताकविवाहक दिन मिथिला मे विवाह सेहो मना छल, मुदा अतिउत्तम लग्न हेबाक कारण अवध संग आब मिथिला मे सेहो लोक विवाह लेल तैयार भ गेल अछि। एकर पाछु विद्वानक कहब अछि जे
सीताक पिता अपन बेटीक सुख लेल जे भ सकैत अछि केलाह, मुदा हुनक बेटी जीवन क हर दुख भोगलीह। एहन मे सीताक जीवन स जुड़ल कोनो प्रक्रिया कए दोहरेबा लेल मिथिलाक लोक तैयार नहि छल।
सीताक जन्म स एकटा आओर पक्ष सामने अबैत अछि जे मिथिलाक जमीन मे खुद लक्ष्मी बसल छथि।अर्थात मिथिला क उन्नति ओहि ठामक जमीन मे गड़ल अछि।
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