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Sunday, March 07, 2010

उथल पुथल पथ की इस भागदौड़ में

उथल पुथल पथ की इस भागदौड़ में,
क्षितिज पर नज़र आती भोर की की वो पहली किरण,
रोजमर्रा के जीवन में, कोशिश नया कुछ पा लेने की,
कुछ नए रंग, खुशियों के अपने ही अंदाज़ में,
एक नयी आशा जीवित उमंगों की,
कि पा लेना उनको, बन चली इक चाहत सी,
जिजीविषा सह जूझ रहे सब,
क्या होंगे नसीब किसी को,
पूर्ण सपने जीवन के.....?
हुंह..... बातें हैं ये बड़...ी-बड़ी,
होता नहीं है कुछ इनसे,
देखा है मैंने.....
रगड़ सिसक कर,
नंगे भूखों को सड़कों पर,
बातें हैं ये बड़ी-बड़ी,
होना जाना है कुछ नहीं,
चाहो सकून तो जा देखो तुम,
कर देखो गरीब की,
भूख को तुम रौशन.....
फिर देखो तुम,
है मिलता कैसा सकून तुम्हें है,
पा लेते नीर को जैसे,
गहरे मरुस्थल में जीवन को जैसे.....

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