
हकासल छी पियासल छी
मिथिला दर्शन के आशल छी!
मदारी छी भिखारी छी
मिथिला दर्शन लेल पागल छी!!
देखब पावन सीता केर धाम
तहन जायब विद्यापति गाम
चरण रखबा स पहिनहि हम
माथ माटी में साटब
जतय आयल छला शंकर
बनय विद्यापति के चाकर
किछु दूर और जायब हम
जायब उच्चैठ देवी हम
जतय कालीदास के देवी
वरदान दय विलीन भेली
पूजब हुनकर ओही प्रतिमा के
करब सुमिरन ओही महिमा के
देखब वाचस्पति नगरी के
करब गुणगान पगरी के
जतय के रीति अछि सबदीन
"साग खाई बरु जीबन काटब
नई झुक देब पगरी के
अतिथि देवो भव हम सबदीन
जपिते रहब अई कथनी के"
हकार कोजगरा के पूरब
पान मखान लए क घुरब
सामा चकेबा चौठी चंदा
ब्रत करब हम छैठ के
सप्ता बिप्ताक कथा सुनि क
ध्यान करब गुरुदेब के
जायब राघोपुर एक बेर हम
करब दर्शन ओहि धरती के
जतय विद्याधर जनम लेला
जिनक कामेश्वर सिंह छला चेला
देखब मिथिला केर पेंटिंग
जकर गुणगान चाहू दिश
जखन घुरी आबय लगाब हम
एक टुक माटिक लायब संग
नित उठी माथ स साटब
करब सुमिरण ओहि मिथिला के
विसरब ने मिथिला दर्शन के
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