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Saturday, February 12, 2011
हे माँ तुने क्या - क्या दिया तुने
हे माँ तुने क्या - क्या दिया तुने
बचपन के उस गोद में
तेरे उस दूध में
तेरे गोद - बांहों के वो झूले
भूल ने को करता हु
उतना उस तेरे स्नेह में डूबता जा रहा हूँ
अन्त्त्र रूपी उस अश्रु को रोक नहीं पता हूँ
देह रूप में तू होती तो तेरे गोद में
मेंरे गम को डाल कर
मुक्त रूप में चहक जाता
पल भर के रोने से तेरा
मात्त्र्व बोल पड़ता था
पेरो पर तो क्या खड़ा होता
घुटनों के बल भी तुने सिखाया
वो रातें भी मेने देखि हे
राख-रेत की वो आवाज
जुढ़े बर्तनों की खरखराहट
के साथ मध्य रात्रि में आया करती थी
पर दुनिया सोयी रहती थी
पत्नी बना कर वो दूर देश चला गया
माना वो भी एक मज़बूरी थी
आश उसी पर लगी थी
महज एक बच्चा था में
क्यूँ उर्मिला सा तेरा जीवन बिता
माँ तेरा बेटा जवान हुआ
पर तेरे कम ना कुछ आया
तुने एसा दामन पकड़ा दिया
कोहलू का बैल बना दिया
जब कोई माँ शब्द बोलता हे
निर्धन महशुस करता हूँ
जन्म अगर लूँ दुबारा
९ माह कोख तेरा ही रखना
अब तू वादा ये करना
ब्रह्मचार्य रहने देना
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