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Tuesday, November 09, 2010

गाँव

गुजरा है बचपन जहाँ की गली मे, छूट गये वो गाँव के रस्ते, बीताये हैं साथ जीनके सहारे वो दीन,छूट रहे हैं वो दोस्त ओर वो रास्ते, सोचा था दील को मना लेंगे हम, ना याद करेंगे ये गाँव, ओर वो दोस्त ओर वो रास्ते, मगर भूला था माँ की वो यादे जो, हमेसा याद आती हैं. महफिल में तन्हाई में, आईने में परछाईं में, गानों में शहनाई में ,वो गाँव की यादें,वो दोस्त की यादे,वो प्यार की बातें,वो सपनो की रातें.वो दीवाली की मस्ती, वो होली के रंग, वो मिट्टी की खुश्बू,वो खेलों का जादू.वो किस्से-कहानियाँ,वो रूठना-मनाना,वो खुशियों का तराना,बहुत याद आते हैं, हमें बहुत सताते हैं, हमने अब समजा की इन्हे भूल जाना मुश्किल ही नही, नामुमकिन है, क्यूँ की यादें याद आती हैं, बातें भूल जाते हँ पर यादें याद आती हैं,


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