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भूगोलसँ विलुप्त भऽ चुकल मिथिला जँ एखनोधरि अस्तित्वमे अछि तँ एकरा पाछाँ एक्कहिटा कारण छैक— एहिठामक लोकवेदमे रहल बौद्धिक ऊर्जा आ मैथिल संस्कृतिमे रहल विलक्षणता एवं वैज्ञानिकता। मिथिलामे जीवनक विविध रोमाञ्चक घड़ि एवं महत्त्वपूर्ण क्रियाकलापकेँ सांस्कृतिक आवरण ओढ़ाकऽ धार्मिकता एवं सामाजिकतासँ आवद्ध कएल गेल छैक। लोकव्यवहारमे प्रचलित क्रियाकलापसभसँ मात्र सेहो ई स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे एकर गर्भमे एखनो बहुतो बहुमूल्य रत्न नुकाएल छैक। एहीसभ कारणे एखनोधरि मैथिल संस्कृति जीवन्त अछि आ मिथिला अस्तित्वमे अछि। आजुक सन्दर्भमे तँ इहो कहब अतिशयोक्ति नहि बुझाइत अछि जे नेपालमे मिथिले एकटा एहन सांस्कृतिक सम्पदा अछि, जकर आङुर धऽकऽ मधेश नामक राजनीतिक क्षेत्र डेगाडेगी दऽ रहल अछि। भारतदिस सेहो कमसँ कम बिहारक जँ बात कएल जाए तँ ओहि७म मिथिला छोडि आन कोनो उल्लेख्य सांस्कृतिक सम्पदाक सर्वथा अभावे देखल जाइत अछि।
आइकाल्हि मात्र धार्मिकता आ परम्परागत संस्कारक रूपमे अधिकांश पावनि–तिहार वा सांस्कृतिक कर्म सीमित होइत गेल पाओल जाइत अछि। मुदा मिथिलाक पावनि–तिहारसभकेँ जँ सूक्ष्मतापूर्वक देखल जाए तँ एहिसभक पाछाँ कोनो ने कोनो उद्देश्य निहित रहल स्पष्ट देखबामे आबि जाइत छैक। एकरासभकेँ आओर बेकछाकऽ देखलापर आजुक समयमे सेहो ई पावनि–तिहार ओतबए सान्दर्भिक आ उपयोगी बुझाइत छैक। साओन मासमे मिथिलाक किछु जातिमे नवविवाहित दम्पतिसभक लेल आयोजन होबऽ वला मधुश्रावणी पावनिकेँ सेहो एही रूपमे लेल जा सकैत अछि। मधुश्रावणी विशेषतः नवविवाहिता स्त्रीसभक लेल आयोजित भेनिहार एकटा एहन धार्मिक अनुष्ठान छियैक,जाहिमे ओसभ धार्मिक रूपेँ तँ विषहरा आ महादेव–पार्वतीक पूजा करैत छथि, मुदा एकर गहिराइमे जा देखलापर स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे मधुश्रावणी मिथिलामे मनाओल जाएवला एकटा परम्परागत प्रकृतिक ‘मधुचन्द्रिका’ अर्थात ‘हनिमून’ छियैक। मधुश्रावणी मिथिलाक ब्राह्मण,कायस्थ, देव, स्वर्णकार आदि जातिमे विशेष रूपसँ मनाओल जाइत अछि।
आधुनिक यौनशास्त्रीलोकनि हनिमूनकेँ वैवाहिक सम्बन्ध सुदृढीकरणक प्रमुख आधार मानैत छथि। तत्कालीन मैथिल विद्वानसभक सेहो एहि पावनिक परम्परा आरम्भ करैत काल इएह मानसिकता रहल होएतनि। प्रायः इएह कारण भऽ सकैत अछि जे मिथिला क्षेत्रमे परम्परागत रूपेँ मधुश्रावणी मनाओल जाएवला ब्राह्मण, कायस्थ, देव आदि जातिमे वैवाहिक सम्बन्ध–विच्छेदक घटना अपेक्षाकृत कम देखबामे अबैत अछि। जाहिरसन बात अछि— जेँ विवाहक बन्धन सक्कत रहैत छैक, तेँ एहिमे आगाँ चलिकऽ दुर्घटना कम होइत छैक। लोक–लाजक भय वा स्त्री जातिक लेल डेग–डेगपर लगाओल जाएवला वर्जना मात्र जँ ‘जबर्दस्ती दाम्पत्यक गाड़ी’ घिचबाक कारण रहितैक तँ मिथिलाक आनो जातिमे वैवाहिक सम्बन्ध ओतबए सुदृढ रहितैक, जतेक मधुश्रावणी मनौनिहार जातिमे।

तहिया एखनजकाँ ‘हनिमून’ क लेल बाहर जएबाक अवस्था नहि छलैक। भऽ सकैत छैक जे यातायातक असुविधा एकर प्रमुख कारण रहल हो। मुदा नवविवाहित दम्पतिकेँ किछु उत्फुल्लता, किछु उन्मुक्तता भेटबाक चाही— एहि बातक निष्कर्ष तत्कालीन विद्वानलोकनि निकालने होएताह। एकरा लेल ओलोकनि कामोद्दीपनक दृष्टिएँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानल जाएवला बरसाती महिना साओनक चयन कएने होएताह। धार्मिकताक सङ्ग आबद्ध कऽ एकरा व्यापकता देल गेल होएतैक। साओनक मधुरताक आभास करएबाक सन्दर्भमे तथा यौन–सम्बन्ध सुदृढीकरणक दृष्टिएँ आवश्यक तत्त्वसभ समाहित कऽ एकरा एकटा परम्परा बना देल गेल होएतैक। एहि नान्हिटा लेखमे वैज्ञानिक दृष्टिएँ मैथिल संस्कृतिमे पाओल जाएवला सम्पूर्ण सार्थक पक्षसभक विस्तृत चर्चा करब सम्भव नहि अछि। मुदा एतबा अवश्य कहल जा सकैत अछि जे मैथिलीक अधिकांश संस्कार, आचार–विचार एवं व्यवहारमे डेग–डेगपर वैज्ञानिक आधारसभक प्रचुरता पाओल जाइत अछि।
यौनविज्ञानक दृष्टिएँ जँ देखल जाए तँ मधुश्रावणी पावनिक अत्यन्त विशिष्ट महत्त्व अछि। सामान्यतया ई पावनि मनाओल जाएवला जातिसभमे विवाहक बाद लड़का सासुरमे रहैत अछि। परम्पराक जँ बात करी तँ चारि दिनक बाद ओकरासभक ‘चतुर्थी’ अर्थात प्रथम मिलन होइत छैक। एहि चारि दिनधरि वर–कनियाँ दुनूकेँ नोन नहि खाए देल जाइत छैक। चारिम दिन भोजनमे माछ–मासुसन सुरुचिकर एवं तामसी खाद्यवस्तु समाविष्ट रहैत छैक, जे कामोद्दीपनक दृष्टिएँ सेहो विशेष महत्त्व रखैत अछि। एहिठाम संस्कृतिक अन्तर्वस्तुक रूपमे नुकाएल मनोविज्ञान दऽ विचार कएल जा सकैत अछि। वस्तुतः ई चारि दिन वर–कनियाँक रूपमे दू अपरिचित प्राणीकेँ भावनात्मक रूपेँ लग अएबाक लेल देल गेल विशेष अवसर छियैक। कारण, यौनशास्त्रीलोकनिक कहब छनि जे जाधरि स्त्री–पुरुष दुनू भावनात्मक रूपेँ निकट नहि होएत, ताधरि सफल यौन–सम्बन्धक स्थापना नहि भऽ सकैत छैक। समाजमे जहिया प्रेम–विवाहक सम्भावना नहिजकाँ छलैक,तहिया एही भावनात्मक निकटताक लेल ई चारि दिन देल जाइत छलैक। जँ एना नहि रहितैक तँ सामान्यतया आन जातिमे विवाहक प्रातेभने मनाओल जाएवला सुहाग–रातिक लेल ब्राह्मण–कायस्थ–देव आदि जाति किएक चारि दिनधरि उपास रखितथि! शिक्षा–दीक्षाक मामलामे तत्कालीन समयक सर्वाधिक अग्रणी मानल जाएवला एहि जातिसभमे कोनो रूढ़िक कारणे तँ एहन बात नहिएँटा भऽ सकैत छलैक! अस्तु।
विवाहसँ चतुर्थीधरि भावनात्मक रूपेँ लग अएबाक लेल चारि दिनक समय तँ देल जाइत छैक। मुदा अवस्थाजन्य कारणकेँ देखैत एकटा खतरा बनले रहैत छैक। खतरा ई जे आगि आ खढ़क बीच निकटता भेलापर धधरा ने पजरि जाए वा कही युवा मोन बहकि ने जाए! तकरे सावधानीस्वरूप ओकरासभकेँ नोन नहि खाए देल जाइत छैक। नोन नहि खाएल अवस्थामे ओहुना लोक शारीरिक आ मानसिक रूपेँ शिथिल भऽ जाइत अछि। निश्चित रूपेँ अनोनाक अभीष्ट इएहटा भऽ सकैत छैक जे नवविवाहित वर–कनियाँमे आवश्यक तैयारीसँ पूर्वहिँ काम–भावना नहि भड़कि जाइक। चारिम दिनक मधुर–मिलनक लेल फेर नोनक सङ्ग–सङ्ग भोजनमे सेहो विशेष रूपसँ नीक–निकुतक ओरिआओन कएल जाइत छैक। ई भोजन सामग्री शारीरिक रूपसँ वर–कनियाँकेँ तैयार करैत छैक। जखन कि मानसिक रूपेँ उद्वेलित करबाक काज करैत रहैत छैक— साँझ–कोवर आदि गीतमे व्यक्त भेनिहार प्रेम–प्रसङ्ग। समग्र रूपमे बढ़ैत मानसिक–शारीरिक उद्वेलनक भावमे चुहलवाजीक छौँक लगएबाक काज करैत छैक— डहकनक झँसगर पाँतिसभ।
एहि तरहेँ चतुर्थीमे भावनात्मक रूपेँ शारीरिक सम्बन्धकेँ सुदृढ बनएबाक प्रयत्न कएल जाइत छैक। एहिठाम फेर जँ परम्पराक गप्प करी तँ ई देखल जाइत अछि जे पहिने एहि जातिसभमे विवाहक बाद सासुरसँ विदाह भऽकऽ अएलाक बाद वर एक्कहिबेर मधुश्रावणीएमे पुनः सासुर जाइत छल। तेँ विश्वास कएल जा सकैत अछि जे कनियाँ–वरक एहि दोसर मिलनकेँ पुनः शारीरिक सम्बन्धक प्रगाढ़तासँ भावनात्मक सम्बन्ध सुदृढ करबाक सांस्कारिक संयन्त्रक रूपमे विकसित कएल गेल हो।
एहि पावनिमे नवविवाहिता तेरहसँ लऽ पन्द्रह दिनधरि विषहरा आ गौरीक पूजा करैत छथि। एहि पूजाक लेल फूल लोढ़ऽ ओ स्वयं गेल करैत छथि आ सङ्गमे रहैत छनि हुनक सखी–बहिनपासभ। फूल लोढ़ब मूलतः बहाना होइत अछि। असली काज रहैत छैक घुमफिर आ गप्पसप्प। जखने कोनो नवविवाहिता अपन सखी–बहिनपासभक सङ्ग घुमफिर करऽ कतहु जाएत तँ ओकरासभक बीच गप्पक विषय की भऽ सकैत अछि, से सहजहिँ अनुमान लगाओल जा सकैत अछि। निश्चित रूपेँ गप्पक विषय ओकर पति, ओकरासमभक अनुभव आदि–इत्यादि रहैत होएतैक। ई बातचीत यौन–भावनाकेँ तीव्र करबामे आ यौनसम्बन्धी विविध जिज्ञासासभक समाधानमे सेहो सहायक होइत छैक। बादमे पूजा–कालमे वर–कनियाँ दुनूकेँ संगहि राखिकऽ शिव–पार्वतीक विभिन्न प्रसङ्गक बखान करैत यौनसम्बन्धी खिस्सासभ प्रतीकात्मक रूपेँ सुनाओल जाइत छैक। दुनू युवा–मनकेँ प्रेम आ काम–भावना बढ़एबामे ई खिस्सासभ उपयोगी भेल करैत छैक। एकरा बाद फेर विवाह–कालमे बनल कोहबर तँ वर–कनियाँ लेल अजबारले रहैत छैक। आ, ई क्रम निरन्तर तेरहसँ लऽ पन्द्रह दिनधरि चलैत रहैत छैक। निश्चित छैक जे एतबा अवधिमे वर–कनियाँ एक–दोसराक सङ्ग शारीरिक आ मानसिक दुनू दृष्टिएँ बेस लग आबि जाइत छैक, जे कि आजुक आधुनिक वैज्ञानिक समाजक हनिमून आ तत्कालीन परम्परागत मैथिल समाजक मधुश्रावणीक अभीष्ट सेहो छियैक।
मिथिलाक संस्कृतिमे यौनकेँ बड़ बेसी महत्त्व देल गेल छैक। मुदा कतेको लोक एकरा धर्मक ससरफानीमे तेना ने गछाड़िकऽ राखि देने छथिन जे आमलोक आगाँ–पाछाँ किछु सोचिए नहि सकैत अछि। तेँ जखन ई कहल जाइत अछि जे मधुश्रावणी यौनविज्ञानक अभिमञ्चनसम्बन्धी पावनि अछि तँ कतेको मैथिल महामनासभ बमकि उठैत छथि। किएक तँ ओ एहिमे महादेव–पार्वतीसँ बेसी किछु देखिए नहि सकैत छथि। मधुश्रावणीमे पूजित विषहरा (नाग) दू रूपेँ महत्त्व रखैत छथि। साहित्य वा ललितकलामे जे प्रतीकसभ प्रयोग कएल जाइत अछि, ताहिमे माछकेँ स्त्री जननेन्द्रिय, साँपकेँ पुरुष जननेन्द्रिय, काछुकेँ सम्भोग, बाँसकेँ वंश आदि मानल जाइत अछि। नवविवाहिता प्रतीकात्मक रूपेँ विषहराक पूजा करैत पुरुष जननेन्द्रियक महत्त्व बूझैत छथि। दोसरदिस प्रकृति संरक्षणक लेल सेहो साँप महत्त्वपूर्ण अछि। तेँ भलहि ओ विषधर अछि, मुदा ओकर संरक्षण होएबाक चाही, से सन्देश एहिसँ जाइत अछि।
मधुश्रावणीक खिस्सामे सेहो तेहने बातसभ बेसी अबैत छैक। जेना विषहराक जन्मेक सम्बन्धमे उल्लेख अछि— ‘एकबेर महादेव आ पार्वती जलक्रिडा करैत सम्भोग कऽ रहल छलाह। तेहनेमे महादेवक वीर्य स्खलन भऽ गेलनि। ओहिसँ विषहराक जन्म भेल।’ तहिना गौरीकेँ छिनारि बनएबाक प्रसङ्ग सेहो मधुश्रावणीक खिस्सामे आएल अछि। किछु फकड़ामे सेहो एहि तरहक बातसभ आएल अछि। जेना बैरसी आ युवतीबीचक संवादमे कहल गेल अछि— ‘ऊँचे आरि ऊँचे धूर ऊँचे त खरिहान रे, ताहूसँ जे ऊँच देखल गौरीके भथियान रे।’ एही तरहेँ गौरीक‘आङ’, गौरीक स्तन आदिक वर्णन सेहो बड़ रसगर अन्दाजमे कएल गेल अछि। मैथिल संस्कृतिमे यौनकेँ कतेक महत्त्व देल गेल छैक,तकर अनुमान अहिबक फड़ नामक पकवानक रूप–रंग आ नामसँ सेहो स्पष्ट भऽ जाइत अछि। तेँ निःशङ्क भऽकऽ कहि सकैत छी जे मधुश्रावणी यौनभावना आ यौनशिक्षाक महापर्व छियैक। साओन मासमे पड़लासँ ई अपन सार्थकताकेँ आओर बेसी पुष्टि करैत अछि। कारण हम एकटा एहन जोड़ीकेँ जनैत छी जे विवाहक डेढ़ दशक गुजरि गेलाक बादो जखन वर्षा होबऽ लगैत छैक तँ कलेजमे पढौनाइ छोड़िकऽ दौड़ल–दौड़ल डेरा पहुँचि जाइत छथि। एहिमे ओहि मित्र दम्पतिसँ बेसी कारगर साओनक मादकता करैत छैक। आखिर एकरे ने मैथिल संस्कृति सहेजने अछि।
आइकाल्हि मात्र सतही दृष्टिएँ देखनिहार किछु तथाकथित महिला अधिकारवादीसभ मधुश्रावणीक क्रममे कनियाँकेँ ‘टेमी’ देल जाएवला रीतिकेँ महिला–हिंसाक एकटा रूप मानैत एकर विरोधो करैत देखल जाइत छथि। एहि विरोधक पाछाँ हमरा एक्कहिटा कारण नजरि अबैत अछि— हुनकासभमे मैथिल संस्कृतिक विशिष्टताक सन्दर्भमे रहल अज्ञानता। टेमी देबाक विधिमे कनियाँक ठेहुनमे पानक पात राखि उपरसँ जरैत टेमीसँ छुआओल जाइत छैक। निश्चित रूपेँ ई सामान्य पीड़ादायक सेहो होइते होएतैक। मुदा की स्त्री जातिकेँ प्रथम संसर्गमे ओ सामान्य पीड़ा नहि होइत छैक? वस्तुतः ई ओकरे एकटा कड़ी छैक, जाहिमे ई सङ्केत देल जाइत छैक जे यौनसम्बन्ध जँ बड़ आनन्ददायक होइत छैक तँ ओहिमे स्त्रीकेँ पीड़ासँ सेहो साक्षात्कार करऽ पड़ैत छैक। एकर पृष्ठभूमिमे एकटा एहू पक्षकेँ लेल जा सकैत छैक जे भऽ सकैछ, पहिने–पहिने मधुश्रावणीएक समयमे वर–कनियाँबीच प्रथम शारीरिक मिलन होइत रहल होइक आ तकरे आभास करएबाक लेल ई प्रथा चलाओल गेल हो।
एकटा दोसर कारण इहो मानल जाइत अछि जे मिथिलामे यवनसभक आक्रमण भेलाक बाद ओकरासभक कुदृष्टि नवकनियाँसभपर बेसी पड़ैत रहैक। ओकरासभसँ बचएबाक लेल कनियाँकेँ कनेक आगिसँ जरा देल जाइक, जाहिसँ ओसभ ओकरादिस ध्यान नहि दिअए। कारण मुसलमानसभ जरनाइकेँ बहुत खराब मानैत अछि। पं. सूर्यकान्त झा ई तर्क आगाँ बढ़बैत कहैत छथि— ‘एही कारणे मुइलाक बादो ओकरासभकेँ जराओल नहि जाइत छैक, गाड़ल जाइत छैक।’ संस्कृतिविद स्व. प्रो. नमोनारायण झाक एहि विषयमे तर्क छनि जे ठेहुनपर कोनो नस एहन रहैत होएतैक, जकरा प्रभावित कएलापर यौनसम्बन्धी ग्रन्थीसभमे सकारात्मक असर पड़ैत होइक आ ताहीक अन्तर्गत ई प्रक्रिया शुरू कएल गेल हो। स्वास्थ्योपचारक चीनी पद्धति अक्यूपङ्चर, अक्यूप्रेसर आदिपर ध्यान देलापर एहू बातमे विश्वास करबाक यथेष्ट आधारसभ बनैत छैक।
टेमीक एकटा बातकेँ लऽकऽ नेपालक मिडिया आ मिथिलाक यथार्थसँ दूर–दूरधरिक कोनो सम्बन्ध नहि रखनिहारि किछु महिलावादीसभ किछु सालपूर्व एक्के टाङपर खूब नाचल रहथि। एहि नामपर ओसभ मधुश्रावणीकेँ मात्र नहि, सम्पूर्ण मैथिल विवाह पद्धतिकेँ बदनाम करबापर लागल छथि। एना देखलापर ओ व्यक्तिसभ हमरा ओहने कोनो अज्ञान नेनाजकाँ लगैत अछि, जे दूटा साँपकेँ आपसमे जोड़ लगैत देखलापर बाप–बाप चिचिया उठैत अछि जे साँपक झगड़ा भऽ रहल छैक। पीड़ा टेमीएटामे नहि होइत छैक। रोग निवारणक लेल लगबाओल जाएवला सुइयामे सेहो पीड़ा होइत छैक। मूह–कानक सिंगार लेल नाक–कान छेदएबामे सेहो पीड़ा होइत छैक। सुन्दर आ हाथ लागल चूड़ी पहिरबामे पर्यन्त पीड़ा होइत छैक। तखन बुझबाक जरूरति ई रहैत छैक जे पीडाक प्रयोजन की? नाक–कानमे भूर कऽकऽ शरीरकेँ खण्डित कएनाइ आ कि नाक–कानमे लटकऽ वला गर–गहनाक सौन्दर्यसँ आनन्दित भेनाइ? टेमीक सन्दर्भमे सेहो इएह बात लागू होइत छैक।
ओहुना टेमी यौनशिक्षाक पावनि मधुश्रावणीक एकटा अङ्ग छियैक। यौनक्रियाक आरम्भ तँ पीड़ासँ होइतहिँ छैक, वात्सायनक कामसूत्रकेँ जँ आधार मानल जाए तँ नखक्षत, दन्तक्षत आदि विधिक चर्चा सेहो अबैत छैक जे नारीक उद्दीपनमे सहयोगी मानल जाइत अछि। एतबए नहि, नारीकेँ जीवनक सर्वाधिक सुखकारी प्रक्रिया सन्तानोत्पादनमे सेहो असह्य पीड़ासँ गुजरऽ पड़ैत छैक। यावत पक्षसभपर विचार करैत गेलापर मधुश्रावणीमे देल जाएवला टेमी पीड़ा पहुँचएबाक उद्देश्यसँ नहि, अपितु स्वस्थकर यौनजीवनक लेल आरम्भहिमे लगाओल गेल टीकाकरणक एकटा प्रक्रिया छियैक। एकरा एहू लेल हिंसा वा प्रताड़नाक रूपमे नहि देखल जा सकैत अछि, किएक तँ ई प्रक्रिया प्रायः नवकनियाँक नैहरमे भेल करैत छैक। नैहरमे कनियाँक काकी, दिदी आदिसँ ओकरा पीडा पहुँचएबाक हिसाबेँ कोनो काज निश्चिते नहि भऽ सकैत छैक।
हँ, टेमीक सङ्ग जोड़िकऽ किछु अनर्गल बातसभक प्रचार अवश्य भऽ रहल छैक। जेना टेमी देल जगहपर जँ फोका भेल तँ पति बेसी मानत। वा ई सतीत्वक अग्निपरीक्षा छियैक। जकरा फोका नहि भेलैक से दुश्चरित्र अछि, आदि–आदि। मुदा ईसभ समयक्रममे जुटैत गेल बकबाससभ छियैक। भऽ सकैछ जे कहियो ककरो टेमी दैत काल बेसी पाकि गेल हेतैक आ फोँका भऽ गेल हेतैक तँ टेमी देबऽ वाली ओकरा भरोस देबऽ दुआरे कहि देने हेतैक जे जकरा जतेक पैघ फोका होइत छैक, तकरा घरवला ततेक बेसी मानैत छैक।
टेमी तहियाक प्रचलन छैक, जहिया मिथिलामे आधुनिक शिक्षाक प्रसार नहि भेल छलैक। ओहि समयमे वर–वधुकेँ यौनशिक्षा देबाक कोनो भरोसगर माध्यम सेहो उपलब्ध नहि छलैक। मुदा आइ युवायुवतीसभ अपन पाठ्यपुस्तकसँ लऽकऽ अन्य अनेको माध्यमसँ सेहो ई शिक्षा आसानीसँ प्राप्त कऽ सकैत छथि। तेँ उपयोगिताक दृष्टिएँ मधुश्रावणी आ मधुश्रावणीक टेमी किछु आवश्यक नहि रहि गेलैक अछि। मुदा हमरासभक संस्कृति लोककल्याणक पक्षकेँ एतेक गहियाकऽ धएने अछि, से बात विश्व समुदायकेँ कहबाक लेल मात्र सेहो एहि तरहक संस्कृतिक संरक्षण आवश्यक छैक। हँ, एहिमे जतऽ कतहु विकृति नजरि आबए, ओहिमे सुधार वा परिमार्जन आवश्यक भऽ जाइत छैक। जेना कि राजविराजमे मैथिल महिला परिषदक अगुआइमे टेमी बन्द करएबाक अभियान चलाओल गेल अछि। ई सर्वथा उचित बात अछि। किएक तँ मिथिलामे कोन चीज कतबाधरि पाच्य अछि आ कतबा अपाच्य अछि, तकर निर्णय करबाक अधिकारी मिथिलेवासीसभ भऽ सकैत छथि। मैथिल नारीकेँ जँ कतहु प्रताडित भेलसन बुझाइत छनि तँ एकरो आवाज मैथिले नारीकेँ उठएबाक चाहियनि। आनकेँ तँ की छैक, कोनो मैथिल महिलाक सीँथमे लागल सिन्दुर देखिकऽ कहि सकैत अछि, ‘बाफ रे बाफ, मिथिलाक नारीपर बड़ अत्याचार होइत छैक। ओकरा पुरुषसभ एतेक प्रताड़ित करैत छैक जे सभ दिन ओकर माथ फुटले रहैत छैक।’
आइकाल्हि आधुनिक विचारधाराक लोकसभ परम्परागत अधिकांश पक्षकेँ अन्धविश्वास वा कुरीतिक रूपमे व्याख्या करैत छथि। मुदा मैथिल संस्कृतिमे बेसी एहने पक्षसभ अछि, जे निरर्थक नहि अछि, पूर्णतः सार्थक अछि। आजुक आधुनिक समाजपर्यन्त एहि संस्कृतिसँ बहुतो कल्याणकारी तत्त्वसभ ग्रहण कऽ सकैत अछि। एहन स्थितिमे संस्कृतिकेँ एक्कहि झटकामे तोड़ि फेकबाक धारणा रखनिहार लोकसभकेँ चाहियनि जे ओ एकबेर अपन ज्ञानचक्षु उघारिकऽ अपन संस्कृतिक सिंहावलोकन करथि, तकरा बादहि एकरा विषयमे कोनो मत बनाबथि। आ, हम तँ ई कहऽ चाहब जे वर्तमान समयमे भयानक आर्थिक तङ्गीसँ गुजरि रहल सम्पूर्ण मिथिलावासीकेँ चाही जे ओ मधुश्रावणीसन जीवन्त पावनिकेँ अङ्गीकार कऽ घरहि बैसल अपन बेटा–पुतहुकेँ, बेटी–जमाएकेँ हनिमूनक मौका उपलब्ध कराबथि, मिथिलाक सांस्कृतिक विशिष्टताक संरक्षण–सम्बर्द्धन करथि।
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