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Monday, September 14, 2009

क्यों हिंदी पर शर्म

बचा रहे इस देह में, स्वाभिमान का अंश |
रखो बचाकर इसलिए , निज भाषा का वंश ||

कथा, कहानी, लोरिया, थपकी , लाड - दुलार |
अपनी भाषा के सिवा, और कहा ये प्यार ||

निज भाषा, निज देश पर, रहा जिन्हें अभिमान |
गाये हरदम वक्त ने, उनके ही जयगान ||

हिंदी से जिनको मिला, पद - पैसा - सम्मान |
हिंदी उनके वास्ते, मस्ती का सामान ||

सम्मेलन, संगोष्ठीया, पुरस्कार, पदनाम |
हिंदी के हिस्से यही, धोखे, दर्द तमाम ||

हिंदी की ऊँगली पकड़, जो पहुचे दरबार|
हिंदी के पर नोचते, बनकर वे सरकार ||
अंग्रेजी पर गर्व क्यों, क्यों हिंदी पर शर्म |
सोचो इसके मायने, सोचो इसका मर्म ||

दफ्तर से दरबार तक, खून सभी का सर्द |
'जय' किससे जाकर कहे, हिंदी अपना दर्द ||

द्वारा :- जय चक्रवर्ती

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